अगर मुसलमान इस साल CAA, NRC और NPR के विरोध में हज और उमराह करने ना जाएं तो ये कुर्बानी देशहित में कैसे एक मील का पत्थर साबित हो सकती है*
दोस्तों दुनिया में बेदार क़ौमें वही कहलाती हैं जो जु़ल्म के ख़िलाफ आवाज़ उठाने में बेबाक होती हैं , और अगर कोई क़ौम ज़ुल्म के ख़िलाफ आवाज़ नहीं उठाती तो उस कौ़म का नामोनिशान मिट जाता है। आज मुसलमानों के हालात यक़ीनन ऐसे हो चले हैं कि उन्हें अपने वजूद की ख़ातिर , अपनी नागरिकता और अपने हर दिल अज़ीज क़ानून को बचाने की ख़ातिर सड़कों पर उतरना पड़ा, और एक बेबाक आवाज़ बुलंद करनी पड़ी। जोकि वक़्त का एक अहम तका़ज़ा भी है।
लिहाज़ा इसी विषय में चंद चीज़े आप लोगों के सामने रखी जा रही हैं जिस पर अमल करना इस लिए बहुत ज़रूरी है कि आज अगर आपने आवाज़ नहीं उठाई तो कल चीख़ने-चिल्लाने से भी कुछ हासिल नहीं होने वाला।
* इस के दो पहलु हैं
1. सामाजिक (Social) और राजनीतिक (Political)
2. आर्थिक (Economical)
* वैसे बहुत से लोग इस साल हज 2020 की पहली किश्त जमा करा भी चुके होंगे। लेकिन उनको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है क्योकि वह अपने पैसे को रिफंड भी करा सकते हैं। रिफंड कराने के लिए भारत सरकार की वेबसाइट हज कमेटी ऑफ इंडिया (Haj Committee of India)
http://hajcommittee.gov.in
पर जाकर गाइडलाइन के पेज नंबर 24 पर पैरा नंबर 26 को देख सकते हैं।
चलिए पहले पहलु पर नज़र डालते हैं
*1. सामाजिक (Social) और राजनीतिक (Political)*
* अंतरराषट्रीय स्तर पर एक ज़ोरदार आवाज़ उठेगी कि आखिर भारत से मुसलमान हज करने क्यों नहीं जारहे हैं। जब उनको पता चलेगा कि भारत में एक काला क़ानून लागू किया गया है जो असंविधानिक (Unconstitutional) भी है। इस क़ानून का विरोध करने के लिए हज व उमराह में शिरकत ना करने को अपने आंदोलन का हिस्सा बना लिया है। जिस क़ानून से मुसलमानों, दूसरे मजहब के गरीबों और पिछड़ों का वजूद खतरे में है।
* जिससे पूरी दुनिया के देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार के ख़िलाफ़ मानवाधिकार (Human Rights) की रक्षा के लिए एकजुट हो जाएंगे। और संयुक्त राष्ट्र (United Nation) को भी ना चाहते हुए समर्थन करना पड़ेगा।
* मुसलमानों का इस आंदोलन की वजह से हज में शिरकत ना करना ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (Organization of Islamic Co-operation) की मीटिंग का भी एक अहम मुद्दा बन सकता है। जिसकी अगली मीटिंग अप्रैल 2020 में होनी है।
* OIC 57 इस्लामिक देशों का एक समूह है जिसका लीडर सऊदी अरब है।
* भारत सौ फीसदी (100%) कच्चा तेल OIC के देशों से ही आयात (import) करता है।
* और भारत हमेशा से इस समूह (OIC) का हिस्सा बनने का इच्छुक रहा है। लेकिन क्या मोदी सरकार अपनी इन नीतियों की वजह से कभी भी इस समूह (OIC) का हिस्सा बन पाएगी।
* हो सकता है कि विदेशों में रह रहे भारतीय मुसलमान भी इस आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए हज व उमराह में शिरकत ना करें।जोकि सऊदी अरब कि आर्थिक स्थिति के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है और वह इसके लिए मोदी सरकार को ही जिम्मदार ठहराएगा।
* और फिर सऊदी अरब मोदी सरकार पर इस काले क़ानून को वापस लेने के लिए दबाव बनाएगा।
* अगर फिर भी मोदी सरकार क़ानून वापस नहीं लेती है तो सऊदी अरब अपने देशहित के लिए अपने प्रिय मित्र अमेरिका को भी साथ लाएगा।
* इस सब का इंडायरेक्ट (indirect) असर उन देशों पर भी पड़ेगा जो सऊदी अरब को हज व उमराह के लिए सामान निर्यात (export) करते हैं और उन देशों से भी मोदी सरकार के रिश्ते ख़राब हो सकते हैं।
*अब दूसरे पहलू पर भी नज़र डालते हैं।*
*2. आर्थिक ( Economical )*
* *भारत और सऊदी अरब के बीच हज व उमराह से सालाना लगभग 12,100 करोड़ रुपए (12,100,00,00,000 रुपए ) का कारोबार है।*
* हज व उमराह भारत और सऊदी अरब के बीच एक बहुत अहम और ना खत्म होने वाला आमदनी का ज़रिया है।
* भारत में हज कमेटी का कार्यभार मुख्तार अब्बास नक़वी के पास है जोकि मोदी सरकार के अधीन है।
* भारत में हज से होने वाली कमाई सीधे तौर से मोदी सरकार को जाती है ना कि राज्य सरकारों को।
* सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने में ज़मीन से निकलने वाला कच्चा तेल और हज व उमराह अहम भूमिका निभाते हैं।
* कच्चा तेल तो खत्म हो सकता है लेकिन हज व उमराह सऊदी अरब के लिए एक हमेशा रहने वाला आमदनी का ज़रिया है।
* भारत हज में शिरकत करने में इंडोनेशिया (Indonesia) के बाद दूसरे स्थान पर है।
* भारत उमराह में शिरकत करने में हमारे पड़ोसी मुल्क और इंडोनेशिया के बाद तीसरे स्थान पर है।
* आईए जानते हैं हज व उमराह से होने वाली आमदनी के बारे में।
*हज*
* *हज के ज़रिए भारत और सऊदी अरब के बीच कम से कम 5,600 करोड़ रुपए (5,600,00,00,000 रुपए) का कारोबार है।*
* भारत से 2019 में दो लाख (2,00,000) हज यात्रियों ने शिरकत की। जिसमे से लगभग एक लाख चालीस हज़ार (1,40,000) सरकारी कोटे से और साठ हज़ार (60,000) प्राइवेट कोटे से।
* एक हज यात्री सरकारी कोटे से कम से कम ढाई लाख (2,50,000) रुपए और प्राइवेट कोटे से साढ़े तीन लाख (3,50,000) रुपए तक चुकाता है।
* सरकारी = 1,40,000x 2,50,000 = 3,500,00,00,000 रुपए
3,500 करोड़
* प्राइवेट = 60,000x 3,50,000 = 2,100,00,00,000 रूपए
2,100 करोड़
* कुल = 3,500 + 2,100 = 5,600,00,00,000 रुपए
*5,600 करोड़ रुपए*
* तथ्यों की जांच के लिए भारत सरकार की वेबसाइट हज कमेटी ऑफ इंडिया (Haj Committee of India)
http://hajcommittee.gov.in/
पर जाएं।
* रोचक बात तो ये है कि कोई सब्सिडी ना मिलने के बावजूद भी एयरइंडिया जैसी सरकारी एयरलाइन के ज़रिए हाजियों को यात्रा करनी पड़ती है। जिसको सरकार प्राइवेट कंपनियों को बेचना चाहती है और कोई इसको खरीदने को तैयार भी नहीं है। इस सरकारी एयरलाइन के कर्मचारियों को वेतन भी हज यात्रियों के पैसों से ही मिल पाता है।
* एक और ख़ास बात कि उत्तर प्रदेश जहां योगी राज में CAA, NRC और NPR के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलनों में पुलिस कि बर्बरता से 23 लोगों की हत्या हुई वहीं हज के लिए सब से अधिक तीस हज़ार ( 30,000 ) सीटें हैं।
* तथ्यों की जांच के लिए भारत सरकार की वेबसाइट हज कमेटी ऑफ इंडिया (Haj Committee of India)
http://hajcommittee.gov.in/
पर जाएं।
*उमराह*
* *उमराह के ज़रिए भारत और सऊदी अरब के बीच कम से कम 6,500 करोड़ रुपए (6,500,00,00,000 रुपए) का कारोबार है।*
* भारत से उमराह के लिए एक साल में कम से कम 6,50,000 मुसलमान शिरकत करते हैं।
* इस का अंदाज़ा आप सऊदी अरब कि सरकारी वेबसाइट मिनिस्ट्री ऑफ हज और उमराह ( Ministry of Hajj and Umrah ) https://www.haj.gov.sa
पर दिए रमज़ान 2019 के आंकड़ों से लगा सकते हैं।
* 30 मई तक भारतीय उमराह यात्रियों की कुल संख्या 6,43,563 दिखाई गई है।
https://www.haj.gov.sa/en/News/Details/12324
* ये आंकड़े इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार जारी किए गए हैं।
* उमराह यात्री सालाना = 6,50,000
पर व्यक्ति भुकतान = 1,00,000 रूपए
* कुल = 6,50,000 x 1,00,000 = 6,500,00,00,000 रुपए
*6,500 करोड़ रुपए*
* हज + उमराह = 5,600 करोड़ + 6,500 करोड़ = 12,100 करोड़
* *भारत और सऊदी अरब के बीच हज व उमराह से सालाना लगभग 12,100 करोड़ रुपए (12,100,00,00,000 रुपए ) का कारोबार है।*
* क्या आप को लगता है कि मोदी सरकार अपना इतना बड़ा नुक़सान करना चाहेगी। साथ ही साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार की इज़्ज़त भी दांव पर होगी।
* दोस्तों हज व उमराह जैसे पाक अमल कभी खत्म नहीं हो सकते। हज और उमराह बड़ी इबादतें हैं। और हज इस्लाम के अरकानों में से एक है। इसलिए, किसी भी परिस्थिति में इस इबादत को निरस्त नहीं किया जा सकता है। हां, लेकिन जो लोग दूसरी या तीसरी बार हज करने जा रहे हैं, वे विरोध करने के लिए हज पर ना जाएं , क्योंकि हज एक ऐसी इबादत है जो जीवन में केवल एक बार फर्ज़ है। हज को एक से अधिक बार अदा करना फर्ज़ नहीं। और उमराह सुन्नत है, यह फर्ज़ नहीं है और इसे साल में कई बार किया जा सकता है, और कभी भी किया जा सकता है, इसलिए जिन लोगों ने उमराह की योजना बनाई है, उन्हें अपना इरादा स्थगित करना चाहिए और मुल्क की ख़ातिर वही कुर्बानी पेश करनी चाहिए जिस तरह हमारे बुजुर्गों ने 1857 में और फिर 1947 में पेश की थी। और अब उसी जज़्बे की जरूरत है।
* *दोस्तों अगर आप इस तरीक़े से इस काले क़ानून का विरोध जताते हैं तो अपना एक वीडियो बना कर सोशल मीडिया जैसे Facebook, WhatsApp और Twitter के माध्यम से दूसरों को शेयर ज़रूर करें ताकि औरों को भी इस तरीके़ से इस काले क़ानून का विरोध जताना आसान होजाए और अखबारों की सुर्खियां व न्यूज़ चैनल्स की हेडलाइन बन जाए।*
ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें।
जिनको पढ़ना नहीं आता उनको पढ़ कर सुनाएं।
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया