मुंबई. सत्ता में आने के बावजूद शिवसेना का भाजपा पर निशाना जारी है। पार्टी के मुखपत्र 'सामना' में सोमवार को 'विपक्ष का हित किसमें है?' नाम से लिखे संपादकीय में कहा- ये तो कर्मफल है। भाजपा को अगले पांच साल इसी तरह पीछे हटने की आदत डाल लेनी चाहिए थी। कलंक मिटाना है तो भाजपा को सही ढंग से काम करना चाहिए।
'फडणवीस के चट्टे-बट्टे के चश्मे 130 का आंकड़ा देखते थे'
सामना में लिखा- उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार ने विश्वासमत प्रस्ताव जीत लिया है। सरकार को मिला बहुमत अच्छा और धमाकेदार है। सरकार के साथ 170 विधायकों का बल है, ये हम पहले दिन से कह रहे थे। परंतु फडणवीस के चट्टे-बट्टों के चश्मे से ये आंकड़ा 130 के ऊपर जाने को तैयार नहीं था। बाद में 170 की संख्या देखकर फडणवीस के नेतृत्व वाला विपक्ष विधानसभा से भाग खड़ा हुआ। यह आंकड़ा भाजपा वालों के आंख और दिमाग में घुस जाने का परिणाम ऐसा हुआ कि विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव में उन्हें पीछे हटना पड़ा।
'विपक्ष के नेता पद की शान और प्रतिष्ठा बनाए रखें'
मुख्यमंत्री की हैसियत से देवेंद्र फडणवीस ने जो गलतियां कीं, वह विरोधी पक्ष नेता के रूप में तो उन्हें नहीं करनी चाहिए। विपक्ष के नेता पद की शान और प्रतिष्ठा बरकरार रहे, ऐसी हमारी इच्छा है। दरअसल, यह भाजपा का अंदरूनी मामला है कि किसे विपक्ष का नेता बनाएं अथवा किसे और क्या बनाएं, परंतु राजस्थान में भाजपा की सरकार नहीं आई। वहां पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे विपक्ष की नेता की कुर्सी पर नहीं बैठीं। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की भाजपा सरकार पराजित हुई, वहां भी पार्टी के अन्य नेता ने यह पद संभाला। जबकि महाराष्ट्र में दिल्ली वाले 'फडणवीस ही फडणवीस' कर रहे हैं इसके पीछे का वास्तविक रहस्य क्या है यह समझना होगा।
'कलंक मिटाने के लिए खडसे मास्टर से प्रशिक्षण लें'
बहुमत न होने के बाद भी महाराष्ट्र को अंधेरे में रखकर अवैध ढंग से शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री और विधानसभा का सामना किए बिना 80 घंटों में चले जाने वाले मुख्यमंत्री- ऐसा आपका इतिहास में नाम दर्ज हो चुका है, इसे याद रखो। ये कलंक मिटाना होगा तो विपक्ष के नेता के रूप में वैध काम करें या कम-से-कम पार्टी में खडसे मास्टर से प्रशिक्षण लें। बहुजन समाज का चेहरा खो गया है। जनता उससे दूर चली गई है। आज विपक्ष की हैसियत से जो संख्या उनके इर्द-गिर्द दिख रही है, उसे बचाए रखना आगे मुश्किल होगा, ऐसा माहौल है।
भाजपा द्वारा पाले गए मीडिया वाले शोर मचा रहे
महाराष्ट्र पर जोर-जबरदस्ती का अघोरी प्रयोग सफल नहीं हुआ। दिल्ली के उच्चाटन व मारण मंत्र का प्रभाव नहीं पड़ा। सत्ता में रहते हुए 'बोल-बचनगीरी' लोगों ने सह ली। अब 'बाप दिखाओ अन्यथा श्राद्ध करो' ऐसा भाजपा द्वारा पाले गए मीडियावाले ही शोर मचा रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष पद पर नाना पटोले की नियुक्ति तो सबसे बड़ा तमाचा है।
मोदी किसी को बोलने तक नहीं देते
प्रधानमंत्री मोदी के विरोध में बगावत करके सांसद के पद से इस्तीफा देने वाले पहले भाजपाई क्रांतिवीर के रूप में नाना पटोले का नाम दर्ज है। विधानसभा में भी वे जीत गए और अब विधानसभा के अध्यक्ष बन गए। मोदी किसी को बोलने नहीं देते, ऐसा पटोले का कहना था। अब विधानसभा में फडणवीस को बोलना है या नहीं यह नाना पटोले तय करेंगे। विपक्ष के नेता खुद अपनी पद और प्रतिष्ठा बचाए रखेंगे तो सब ठीक होगा।